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अगस्त्यमुनि में कांवड़ियों ने छात्र को पीटा, महिला चोटिल -शांत पहाड़ में कांवड़ियों का ‘कानफोड़ू आतंक’

अगस्त्यमुनि में कांवड़ियों ने छात्र को पीटा, महिला चोटिल

-शांत पहाड़ में कांवड़ियों का ‘कानफोड़ू आतंक’

-मूकदर्शक बनी पुलिस, खौफ में जनता

अगस्त्यमुनि, शांति, आध्यात्म और प्रकृति की गोद में बसे उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में इन दिनों कांवड़ यात्रा के नाम पर शोर और आतंक का नया चेहरा उभर कर सामने आया है। भोलेनाथ के जयकारों के बीच अब लाउडस्पीकरों पर कानफोड़ू डीजे, बाइक साइलेंसर की डरावनी गड़गड़ाहट और बदसलूकी की घटनाएं आम हो चली हैं। उत्तर भारत से आने वाले लाखों कांवड़ियों में से कुछ उपद्रवी किस्म के लोग यात्रा को धार्मिक कम और प्रदर्शन ज्यादा बना रहे हैं। पहाड़ी सड़कों पर तेज आवाज में डीजे बजाना, बाइक पर खतरनाक स्टंट, जगह-जगह ट्रैफिक जाम और स्थानियों के साथ अभद्रता के साथ मारपीट की जा रही है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। कई बार शिकायत करने पर भी कार्रवाई नहीं हो रही है। ऐसा लगता है जैसे पुलिस भी इस “डर और दिखावे की भक्ति“ के आगे बेबस हो चुकी है।

नगर पंचायत अगस्त्यमुनि के देवनगर में शुक्रवार दोपहर को एक छोटे बच्चे को बचाने के लिए साइड मांग रहे एक छात्र को दिल्ली से आ रहे कांवड़ियों ने मिलकर पीट दिया और कपड़े भी फाड़ डाले। अचानक हुए इस हमले से सभी सकते में आ गए। वहां पास खड़े एक दुकानदार दंपति ने किसी तरह बीच बचाव कर छात्र को बचाया। खबर पहुंचने पर स्थानीय युवाओं ने उपद्रवी कांवड़ियों ऐलिस, गौरव, अनुराग अजीत जो सभी कुसुमपुरा बंसत विहार, नई दिल्ली के रहने वाले हैं को पकड़ कर माफी मंगवाई। वहीं बेडूबगड़ में भी एक नेपाली महिला को टक्कर मारकर कांवड़िए भाग गए। स्थानीय लोगों ने महिला को सुरक्षित तरीके से अस्पताल पहुंचाया।

दरअसल, बुज़ुर्गों और बच्चों के लिए यह ‘कांवड़ यात्रा’ किसी डरावने सपने से कम नहीं। कांवड़ यात्रा एक पवित्र परंपरा है, लेकिन अगर इसमें कानून, शालीनता और स्थानीय संस्कृति का ध्यान न रखा जाए तो यह यात्रा श्रद्धा नहीं, आतंक का रूप ले सकती है। प्रशासन को चाहिए कि वह समय रहते इस स्थिति पर नियंत्रण करे, वरना भक्ति के नाम पर ये ’कानफोड़ू आतंक’ पर्वतीय समाज की सहनशक्ति को लांघ देगा।

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